पढ़िए GST के बारे में सबकुछ, आसान भाषा में


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GST  (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) लागू हो चुका है. और साथ में भसड़ भी चालू हो गई है कि क्या सस्ता हुआ, क्या महंगा. दुकान वाले सब महंगा बेचने लगे हैं और आप सोच रहे हैं ये सही है या फर्जी. इसलिए सबकुछ आसान भाषा में इधर समझ लीजिए.
आम जनता को क्या मिलेगा?
कुछ नहीं. आप अभी भी दुकान पर जाएंगे, पैसे देंगे और सामान खरीद के आएंगे. आपको कुछ पता नहीं चलेगा कि क्या हुआ. डिमॉनेटाइजेशन की तरह भी नहीं होगा कि लाइन में लग रहे हैं, रोज नए लोगों से मिल रहे हैं. GST के चलते जो भी बदलाव होगा वो परदे के पीछे ही होगा. मतलब सामान बनने से लेकर मार्केट में आने तक सारी प्रक्रिया वही रहेगी, बस जगह-जगह जो टैक्स दिया जाता है, उसका सिस्टम बदल जाएगा.

मान लीजिए कि आपको महाराष्ट्र के भिवंडी से टॉप मंगाना है. हालांकि मंगाइएगा मत, वो सब्जी का मार्केट है. फिर भी समझने के लिए मान लेते हैं. मान लीजिए कि ज़ारा कंपनी टॉप बनाती है. तो वो कच्चा माल कहीं से खरीदेगी. उसे खरीदने के लिए वो टैक्स देगी. फिर वो कच्चे माल से फैक्ट्री में टॉप बनाएगी. उस पर भी टैक्स देगी. बेचेगी तो उस पर भी टैक्स देगी. खरीदने वाला उसको कहीं और बेचेगा तो सारे टैक्स को मिलाकर नया प्राइस बनाएगा और उस पर टैक्स देगा. इसमें वो टैक्स पर भी टैक्स दे देगा. ये अभी का सिस्टम है.
GST में ये होगा कि टैक्स पर टैक्स नहीं देना पड़ेगा.
तो इस हिसाब से टैक्स कम हो जाना चाहिए. पर जरूरी नहीं होगा कि ऐसा हो. क्योंकि टैक्स रेट भी बदल जाएंगे. तो किसी सामान पर टैक्स बढ़ जाएगा, किसी पर कम हो जाएगा. तो टैक्स बदलेगा, कम होगा कि नहीं, ये तो बाद में पता चलेगा. पर ये जरूर होगा कि सारे सामानों के GST रेट फिक्स कर दिए जाएंगे. चार रेट स्लैब बनाए गए हैं, सारे सामानों पर टैक्स इन्हीं स्लैब में लगेगा.
मान लेते हैं कि रंजन घर-गृहस्थी का सामान खरीदने मॉल में जाता है. खरीद लेता है. बिल भी ले लेता है. बिल पर VAT का टैक्स लिखा होता है. अलग-अलग सामान पर अलग-अलग टैक्स. फिर रंजन का मन करता है कि आये हैं तो रेस्टोरेंट में खाना भी खा लेते हैं. अब वहां से रंजन को फिर बिल मिलता है. यहां पर कई टैक्स लिखे होते हैं. सर्विस टैक्स, कृषि कल्याण सेस, वैट और स्वच्छ भारत.
यहां पर एक ट्रिक है. खाने पर जो टैक्स लगा वो राज्य सरकार के खाते में जाएगा. पर सर्विस टैक्स केंद्र सरकार के खाते में जाएगा.
फिर यहां पर रंजन को मन करता है कि आये हैं तो फिल्म भी देख लें. तो वो टिकट खरीद लेता है. इस पर एंटरटेनमेंट टैक्स दिया रहता है. अगर वो दिल्ली में देख रहा होता तो शायद केजरीवाल एंटरटेनमेंट टैक्स माफ कर देते. कई फिल्मों पर तो कर भी देते हैं.
अब जीएसटी के आने के बाद ये सारे टैक्स इतने अलग-अलग नाम से नहीं आएंगे. सारे SGST (स्टेट जीएसटी) या CGST (सेंट्रल जीएसटी) के नाम से आएंगे. पर इसका मतलब ये नहीं है कि टैक्स कम हो जाएंगे. रेट पर निर्भर करता है. अगर रेट ज्यादा निकल गए तो मार्केट में ज्यादा पैसा देकर भी आना पड़ेगा. जनता को बस बिल पर एक या ज्यादा से ज्यादा तीन टैक्स देखने को मिलेंगे. पर पेट्रोल पंप पर झगड़ा मत कीजिएगा. वहां पर जीएसटी लागू नहीं होगा.
जब बिजनस होता है तो सामान बनाने, बेचने, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट, सर्विस सब पर टैक्स लगता है. ये सारे टैक्स अलग-अलग लगते हैं. पर GST के आने के बाद इतने सारे टैक्स हट जाएंगे. सिर्फ GST लगेगा. पर GST इतना ही नहीं है. इसको थोड़ा और समझना पड़ेगा कि किसको क्या फायदा होगा. क्योंकि हल्ला बहुत है और जनता को कोई डायरेक्ट फायदा नहीं हो रहा है.
टैक्स क्या होता है?

टैक्स दो तरह के होते हैं. डायरेक्ट टैक्स और इनडायरेक्ट टैक्स. डायरेक्ट टैक्स तो आपको देना ही पड़ेगा. आपकी सैलरी से कट जाएगा. सीधा एकाउंट से निकलेगा. इनडायरेक्ट टैक्स को आप दूसरे पर डाल सकते हैं. जैसे कि आप बियर बनाते हैं. इस पर जो भी टैक्स लगेगा, उसको जोड़ के आप प्राइस तय कर लेंगे. ये टैक्स जनता पर चला जाएगा. डायरेक्ट टैक्स देने वालों की संख्या भारत में कम है. मात्र 4 प्रतिशत लोग ही डायरेक्ट टैक्स देते हैं, क्योंकि नौकरियों में कम लोग हैं. पर इनडायरेक्ट टैक्स सारे लोग देते हैं. क्योंकि सामान सभी लोग खरीदते हैं, दुकानों और रेस्टोरेंट में सर्विस सभी लोग लेते हैं. तो कमाइए चाहे ना कमाइए, ये वाला टैक्स तो देना ही पड़ेगा. इसमें अमीर और गरीब में भी कोई अंतर नहीं किया जाता. सबसे एक बराबर इनडायरेक्ट टैक्स वसूला जाता है.
GST इनडायरेक्ट टैक्स से ही जुड़ा हुआ है. GST का मतलब है गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स. मतलब सामान और सर्विस पर लगने वाला टैक्स. गुड्स मतलब कार, टीवी, ब्रेड, कपड़े आदि. सर्विसेज मतलब मोबाइल नेटवर्क, बैंकिंग, हवाई यात्रा, मूवीज आदि.
अभी तक ये मेन टैक्स लगते थे:

सेंट्रल एक्साइज टैक्स
ये टैक्स सामान के प्रोडक्शन पर लगता है. जब फैक्ट्री में कोई सामान बनता है, तो उसकी कीमत बढ़ जाती है. जैसे कि स्टील की कुछ कीमत होती है. पर स्टील से चश्मे का फ्रेम बना लें तो उसकी कीमत बढ़ जाती है. इसकी कीमत बनाने वाला कुछ भी रख सकता है. तो केंद्र सरकार इस पर टैक्स वसूलती है. ये राज्य नहीं वसूल सकते.
सेल्स टैक्स
ये बने हुए सामान के बेचने पर लगने वाला टैक्स है. एक राज्य से दूसरे राज्य में बिक्री पर केंद्र सरकार भी इस पर टैक्स वसूलती है. इसे राज्य सरकार भी वसूलती है. उनको ये अधिकार दिया गया है क्योंकि उनके राज्य में ही ये सामान बनता है और वहीं से बिकने के लिए निकलता है.
(इंडिया में एक अलग तरह का ‘सेल्स टैक्स’ भी लगता है. जहां ट्रक वाले नाके पर पुलिस को दे देते हैं. ये अलग है. इसका GST से कोई लेना-देना नहीं है. ये तो व्यवहार की बात है.)
सर्विस टैक्स
ये टैक्स तो बहुत बाद में आया. 90 के दशक में. ये नए तरह का टैक्स निकाला गया था. क्योंकि डायरेक्ट टैक्स उस अनुपात में बढ़ नहीं रहे थे. तो उनको जबर्दस्ती नहीं बढ़ाया जा सकता. तो नए तरह के टैक्स से टैक्स का दायरा बढ़ाया जा सकता है. (अभी तक सर्विस टैक्स सिर्फ केंद्र सरकार लेती थी. अब जीएसटी के बाद राज्य सरकारें भी ले सकेंगी.)
(इनके अलावा और भी बहुत सारे टैक्स लगते थे.)
इनडायरेक्ट टैक्स को केंद्र और राज्य के बीच इसीलिए तोड़ा जाता है कि सारा पैसा केंद्र के पास ही ना पहुंच जाए. इसीलिए ये संविधान में संशोधन का मामला हो जाता है. अगर संशोधन ना करना होता तो केंद्र सरकार जब मन तब कुछ भी चेंज कर के किसी राज्य को परेशान कर सकती थी.
GST से पहले ये सारे टैक्स बिजनस वालों को देने पड़ते थे:
सेनवैट, सर्विस टैक्स, सेंट्रल एक्साइज टैक्स, एडिशनल एक्साइज ड्यूटी, एक्साइज ड्यूटी मेडिसिन वाले, एडिशनल कस्टम्स ड्यूटी, काउंटरवेलिंग ड्यूटी, सेंट्रल सरचार्ज, सेस, स्टेट वैट, स्टेट सेल्स टैक्स, एंटरटेनमेंट टैक्स (म्युनिसिपैलिटी से अलग), लक्जरी टैक्स, लॉटरी पर टैक्स, स्टेट सेस, ऑक्ट्रोई, एजुकेशन सेस और भी बहुत सारे टैक्स.
इनकी जगह पर अब बस एक टैक्स देना पड़ेगा. सोचिए कि बिजनस करने वालों को कितना फायदा होगा. सिर्फ एक जगह जा के टैक्स दे देना है. कितना पेपर वर्क बचेगा.
पर कुछ चीजों पर पहले की तरह ही टैक्स लगेगा, ये GST से बाहर रखे गए हैं: पेट्रोलियम ट्रेड, हाई स्पीड डीजल, पेट्रोल, नैचुरल गैस, एविएशन टरबाइन फ्यूल, ऐल्कोहॉल.
GST की क्या जरूरत है?

मान लीजिए कि शाहरुख खान 100 रुपए के नूडल्स 110 रुपयों में करण जौहर को बेचते हैं. क्योंकि शाहरुख खान ने उस पर 10 प्रतिशत सेल्स टैक्स दिया है. तो 100 रुपए और 10 टका टैक्स यानी 110 रुपए हो गए. अब करण जौहर उसे अनुराग कश्यप को बेच देते हैं. वो भी इस पर 10 प्रतिशत सेल्स टैक्स देते हैं. तो अनुराग को मिला 110 रुपए और 110 रुपए पर 10 प्रतिशत टैक्स यानी कि 11 रुपए और. कुल 121 रुपये.
अब पहले क्या होता था कि करण जौहर अपने टैक्स कैलकुलेशन में टैक्स पर टैक्स देते थे. क्योंकि शाहरुख ने तो पहले ही टैक्स दे दिया था. उस पर भी करण को देना पड़ा. क्योंकि उनका टैक्स 110 रुपए पर कैलकुलेट हुआ था.
इसके बाद वैट आ गया. इसमें क्या हुआ कि टैक्स पर टैक्स को वापस क्रेडिट कर दिया जाता था. मतलब कि करण के टैक्स कैलकुलेशन में शाहरुख वाले कम कर दिए जाते. (अभी के सिस्टम में वैट राज्य के अंदर ही लगता है. जब एक से दूसरे राज्य में व्यापार होता है तो सेंट्रल सेल्स टैक्स लगता है.)
पर वैट आने से सारी समस्याएं खत्म नहीं हुई थीं. क्योंकि वैट एक्साइज को नहीं क्रेडिट कर सकता. एक्साइज टैक्स पर टैक्स लगता ही जाता है. वो करण के खाते में नहीं क्रेडिट होगा.
GST काम कैसे करेगा?

इसको समझने के लिए टैक्स लेने की जगहों को समझते हैं.
एक राज्य में सामान बनता है, वहीं होलसेलर के पास बिकता है और फिर उसी राज्य में रिटेलर के पास बिकता है और फिर वहीं से जनता के बीच में आता है. ये सारा उसी राज्य में होता है.
अब ये हो सकता है कि होलसेलर सामान किसी दूसरे राज्य में बेच दे.
इस केस में ये हो सकता है कि सामान बनने के बाद पहले दूसरे राज्य में ही बिक जाए और फिर वहां से होकर पहले वाले राज्य में आए.
पहले केस में,
महाराष्ट्र के भिवंडी में बना हुआ सामान मुंबई में बिक रहा है. तो उस पर CGST और SGST लगेगा. केंद्र और राज्य सरकार के पास जाएगा. अब ये सामान मुंबई से नागपुर में बिक रहा है. तो इस पर फिर CGST और SGST लगेगा. अब एक बार से दुबारा बिकने में दुकानदार लोग कीमत बढ़ा देते हैं तो उसी हिसाब से टैक्स बदलता है.
दूसरे केस में,
महाराष्ट्र के भिवंडी में बना सामान मुंबई में बिक रहा है. तो इस पर CGST और SGST लगेगा. पर मुंबई से अब ये सामान दिल्ली में बिकेगा. तो यहां पर IGST लगेगा. पर अब यहां एक लोचा है. मुंबई से बेचने वाला दुकानदार दिखाएगा कि उसने SGST और IGST दोनों दिया है. तो SGST का क्रेडिट क्लेम कर लेगा केंद्र सरकार की IGST से. पर केंद्र का तो ये घाटा हो गया. तो इस केस में राज्य सरकार SGST को केंद्र के खाते में दे देगी.
तीसरे केस में,
पहले मुंबई से निकला सामान सीधा दिल्ली में बिक जाएगा. तो इस पर IGST लगेगा. फिर ये सामान दिल्ली से नागपुर जाता है. अब इस पर SGST और CGST लगेगा. यहां पर नियम के मुताबिक केंद्र सरकार राज्य सरकार को IGST का कुछ हिस्सा ट्रांसफर करेगी.
GST टैक्स रिफॉर्म की क्या जरूरत है?

एक बढ़िया टैक्स सिस्टम सामान के बनने, सप्लाई और रिटेल में बिकने के हर स्टेज पर टैक्स लेता है. ये टैक्स उस बात पर लगता है कि हर स्टेज पर सामान का वैल्यू एडिशन कितना होता है. जैसे कि शुरू में स्टील वायर था, बाद में चश्मे का फ्रेम बन गया. फिर अगले स्टेज पर उसको नाइट-विजन गॉगल बना दिया गया.
वैट के साथ दिक्कत थी कि वो हर राज्य के साथ अलग-अलग था. तो टैक्स सिस्टम थोड़ा सुधरा था, फिर भी बहुत लोचा था. क्योंकि व्यापार बढ़ाने के लिए राज्य टैक्स घटा-बढ़ा देते थे. जैसे कि बिहार में शराबबंदी के बाद यूपी में शराब पर टैक्स कम कर दिया गया था.
तो GST के बाद जनता को कोई डायरेक्ट फायदा नहीं होगा. इतना होगा कि बिजनस करने वालों को टैक्स भरने में और सरकार को टैक्स कैलकुलेट करने में आसानी होगी. साथ ही केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में टैक्स बंटवारे को लेकर भी आसानी हो जाएगी.
पर ऐसा नहीं है कि जीएसटी आते ही सब आसान हो जाएगा. सरकार एक रेट नहीं ला रही है. रेट स्लैब ला रही है. तो जटिलता अभी भी बनी ही रहेगी. अंत में सरकार को एक रेट पर जाना ही पड़ेगा. हालांकि इतने प्रतिरोध थे कि एक रेट नहीं हो पाया.

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